‘‘ऐसा, जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे है।’’
लेखक को ऐसा क्यों लगा?
बस का इंजन चालू हुआ तो लेखक को लगा कि सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं। लेखक को ऐसा इसलिए लगा क्योंकि जैसे ही इंजन स्टार्ट हुआ तो इंजन के अलावा सीट भी हिलने लगा और पूरी बस झनझनाने लगी| बस के टूटे शीशे भी हिलने लगे। कभी सीट आगे होती तो कभी पीछे। पूरी गाड़ी ही इंजन की तरह आवाज कर रही थी।